2 Chronicles 15
1 तब परमेश्वर का आत्मा अजर्याह बेन-ओदेद पर उतरा
2 और वह राजा आसा से मिलने के लिए गया। अजर्याह ने उससे कहा, ‘महाराज आसा, यहूदा और बिन्यामिन भूमि-क्षेत्रों के निवासियो, मेरी बात सुनो। ‘जब तुम प्रभु के साथ रहोगे तब वह तुम्हारे साथ रहेगा; जब तुम उसको खोजोगे तब वह तुम्हें मिलेगा। किन्तु यदि तुम उसको त्याग दोगे तो वह तुम्हें भी त्याग देगा!
3 ‘बहुत समय तक इस्राएली लोग सच्चे परमेश्वर, धर्मशिक्षक, पुरोहित और व्यवस्था से वंचित रहे।
4 परन्तु जब-जब इस्राएली संकट के समय प्रभु परमेश्वर की ओर लौटे और उन्होंने अपने परमेश्वर की खोज की, तब-तब उन्होंने उसको पाया।
5 उन दिनों में युद्ध के समय जनता का नेतृत्व करने वाले अगुए को कहीं शान्ति नहीं मिलती थी; क्योंकि समस्त देश के निवासियों में भगदड़ और अशान्ति फैली हुई थी।
6 सब खण्ड-खण्ड में बंटे हुए थे। एक जाति दूसरी जाति पर हमला करती थी। एक नगर दूसरे नगर पर आक्रमण करता था। परमेश्वर ने हर प्रकार की विपत्ति से उनको आतंकित कर रखा था।
7 किन्तु तुम साहसी बनो! तुम्हारे हाथ मजबूत हों! परमेश्वर तुम्हारे परिश्रम का फल तुम्हें देगा।’
8 राजा आसा नबी अजर्याह बेन-ओदेद की ये बातें, उसकी यह नबूवत सुनकर साहस से भर गया। उसने समस्त यहूदा प्रदेश और बिन्यामिन कुल-क्षेत्र से घृणित मूर्तियां हटा दीं। उसने एफ्रइम के पहाड़ी क्षेत्र के नगरों में भी यही किया। ये नगर उसने युद्ध में जीते थे। प्रभु की वेदी मन्दिर की ड्योढ़ी के सामने थी। राजा आसा ने प्रभु की इस वेदी की मरम्मत की।
9 उसने समस्त यहूदा तथा बिन्यामिन कुलों के सब लोगों को एकत्र किया। एफ्रइम तथा मनश्शे गोत्रों और शिमोन कुल के असंख्य लोग इस्राएल प्रदेश को त्यागकर राजा आसा के पास आ गए थे, और उसके राज्य में निवास करने लगे थे; क्योंकि उन्होंने अनुभव किया था कि प्रभु परमेश्वर राजा आसा के साथ है। राजा आसा ने इन लोगों को भी एकत्र किया।
10 ये सब आसा के राज्य-काल के पन्द्रहवें वर्ष के तीसरे महीने में राजधानी यरूशलेम में एकत्र हुए।
11 जो पशु उन्होंने शत्रुओं से लूटे थे, उनमें से सात सौ बछड़ों और सात हजार भेड़ों की बलि उसी दिन प्रभु को चढ़ाई।
12 उसी दिन वे प्रभु के साथ स्थापित विधान की धर्मविधि में सम्मिलित हुए कि वे सम्पूर्ण हृदय और सम्पूर्ण प्राण से अपने पूर्वजों के प्रभु परमेश्वर के खोजी बनेंगे।
13 जो व्यक्ति, फिर चाहे वह पुरुष हो, स्त्री हो, बड़ा हो या छोटा हो, इस्राएली राष्ट्र के प्रभु परमेश्वर की खोज नहीं करेगा, उसका वध किया जाएगा।
14 उन्होंने जय-जयकार और अत्यन्त उच्च स्वर में, तुरहियां तथा नरसिंगे बजाते हुए प्रभु की शपथ ली।
15 इस शपथ से यहूदा प्रदेश का समस्त जनसमुदाय अत्यन्त प्रसन्न हुआ; क्योंकि लोगों ने मुक्त हृदय से यह शपथ खाई थी। उन्होंने सम्पूर्ण हृदय से प्रभु को ढूंढ़ा था और वह उनको प्राप्त हुआ था। प्रभु ने उनके चारों ओर के शत्रुओं से उन्हें विश्राम दिया।
16 राजा आसा ने अपनी दादी माकाह को भी राजमाता के पद से हटा दिया; क्योंकि उसने अशेराह देवी की एक घृणित प्रतिमा बनाई थी। राजा आसा ने अशेराह की प्रतिमा तोड़ दी, उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए, और उसको किद्रोन घाटी में आग में जला दिया।
17 यद्यपि उसने पहाड़ी शिखर की वेदियां अपने राज्य से नहीं हटाईं, तो भी जीवन-भर उसका हृदय प्रभु के प्रति सच्चा रहा।
18 जो सोना-चांदी तथा कीमती पात्र उसके पिता ने तथा स्वयं उसने परमेश्वर को अर्पित किए थे, उन सब को उसने परमेश्वर के भवन में रख दिया।
19 राजा आसा के राज्य के पैंतीसवें वर्ष तक फिर किसी से युद्ध नहीं हुआ।